Monday, February 29, 2016

आज चाय में फिर चीनी नहीं है


आज चाय में फिर चीनी नहीं है ,
उफ़, ये दिन फिर से वहीं है।
उड़ कर आ जाता है रोज़ ये दिन,
रात भर सोता नहीं तारे गिन गिन।

आज चाय में फिर चीनी नहीं है ,
अहा, थिरकती रही उम्मीद, थमी नहीं है।
बारिशों में भीगी, भाग कर आई
गोदी में मेरी सिमट, ऐसे ही सोयी।

आज चाय में फिर चीनी नहीं है ,
हश्श, मेले में रोशनी कहीं कहीं है।
छन छन के आती रही चाँदनी ,
शहर आज गर्म नहीं है।

आज चाय में चीनी सही है ,
उंह, ये मीठी फिर भी नहीं है।
उठ रही है भाप बहुत देर से,
चाय अब ठंडी नहीं है।

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