चौदहवीं के चाँद सी, सागर के उफ़ान सी,
ओस पर थिरकती थी, गुलाब सी महकती थी,
एक परी घर में रहती थी।
जाने किसने बहका दिया, क्या क्या किसीने कह दिया
उसे लोहे का और मुझे मिट्टी का कर दिया ॥
दिल में बिठा कर बरसों, अरमानो से सहलाया था,
चाँद तारों से आँचल को सजाया था,
एक परी को साथ लाया था ।
जाने कौन उसे बहला गया, धूप में दौड़ा कर
उसे लोहे का और मुझे मिट्टी का कर दिया ॥
उम्मीद है की वो नाहक दौड़ना छोड़, खुद को समझ पायेगी
लोहे के कवच से निकल, मिट्टी में भी खिलखिलाएगी,
वो सांझ जल्दी ही आएगी ॥ वो सांझ जल्दी ही आएगी॥
UnFfffffbelievable...
ReplyDeleteYou still write here :-D
I checked on my blog (mariumarif.wordpress.com) after 2012 while reminiscing and saw your comment. Do you have an fb page of the stuff you write by now?
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