Monday, May 11, 2009

Happy Birthday to Me

....May 12 - Hirdu's Birthday....

This Year it's bit different...Completing 30 Years on this Planet tomorrow....

Many want me to enjoy the day... I also want it ...but now a days it's so difficult to be happy....

Kisi ney kabhi to kaha tha, itna na khush raha ker hirdu, nazar lag jayegi....

anyways...I am kicking the sad feel as hard as I can....

From tomorrow onwards, I want Hirdu to be back....

same happy go lucky feel wala hirdu...who use to laugh more than he use to speak...

Happy Birthday to Myself...and Myself again....

More blogs to be written and enjoyed...

Friday, May 08, 2009

Reasoning Previous posts in Hindi

You might have wondered, Why back to back posts in hindi and that too, a bit tougher ones....well here is the reason :)

1. I was not able to post from a long time.
2. There were many issues going around.
3. During that time, I read too much of Hindi literature (Ardhnarishwar - Vishnu Prabhakar, Agatsya katha, Yudh, Abhigyan - all 3 by Narendra kohli)

All the above had combined effect....

1. I start talking more in hindi and at times my wife gave puzzled look at me, trying to find meaning out of my diction :)
2. even my thought process started to bring in tough to tougher hindi words while I think...
3. finally I needed some place to vent the feel out ...and blog is nearest way for me...

so guy what can I say... in Hindi we say "Ab Bhugto" - अब भुगतो

बिना मुझसे पूछे, तुमने मुझे पराया समझ लिया

आँखें मुदी देख, तुमने मुझे सोता समझ लिया,
आँसू बहते देख, तुमने मुझे रोता समझ लिया
जमीन पर चलते देख, तुमने मुझे जिन्दा समझ लिया,
सिर्फ़ सुनते देख, तुमने मुझे गूंगा समझ लिया,
बाहें फैलाते देख, तुमने मुझे अकेला समझ लिया,
चुपचाप बैठे देख, तुमने मुझे शांत समझ लिया,
बिना मुझसे पूछे, तुमने मुझे पराया समझ लिया,
रूठ कर मुझसे, तुमने मुझे दानव समझ लिया,
बिना मुझसे पूछे, तुमने मुझे पराया समझ लिया

धरा पर भगवान निकृष्ट है

चहूँ ओर अग्न प्रचंड है
रूह आज फिर नग्न है

रात्रि फिर निद्रा मग्न है
मृत्यु का आज लग्न है

जीवन का यन्त्र भग्न है
विश्वास आज फिर खंड खंड है

आत्मा में रोष शेष है
अंतर्मन का रिक्त भ्रष्ट है

व्योम में उत्थान व्यर्थ है
धरा पर भगवान निकृष्ट है

तन्हाई

मीलो दूर तक फैली है तन्हाई
न जाने कब आएगी मुझे नींद की जम्हाई

ना जाने कितने बरस से जाग रहा हूँ मैं
ना जाने किसकी बाट जो रहा हूँ मैं

मिलता नहीं सुकून क्यूँ अब भी मुझे
कँहा कँहा खोजू खुदा मैं अब तुझे

अब थोडी देर सोना चाहता हूँ मैं
बिना ख्वाब की एक नींद लेना चाहता हूँ मैं

बिना छुए मुझे अब सोने दो,
मेरी रूह को कुछ देर अकेले रो लेने दो,

शायद इस बार सो कर ये तबियत कुछ संभल जाए,
शायद इस बार कोई संस्कार मेरे सपनो में न आए,

उठने पर कहोगे तो सब फ़िर से बखेर दूँगा
इस बार मैं अपनी आत्मा को चुप रखूंगा

न कुछ कहूँगा अपनी मर्ज़ी से इस बार
सिर्फ़ और सिर्फ़ जियूँगा, इस बार

बस कुछ देर सो लेने दे मुझे
दिल से दुआएं दूँगा मैं तुझे

Food

Have a look

http://www.cultureunplugged.com/play/1081/Chicken-a-la-Carte