Friday, May 08, 2009

धरा पर भगवान निकृष्ट है

चहूँ ओर अग्न प्रचंड है
रूह आज फिर नग्न है

रात्रि फिर निद्रा मग्न है
मृत्यु का आज लग्न है

जीवन का यन्त्र भग्न है
विश्वास आज फिर खंड खंड है

आत्मा में रोष शेष है
अंतर्मन का रिक्त भ्रष्ट है

व्योम में उत्थान व्यर्थ है
धरा पर भगवान निकृष्ट है

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