मीलो दूर तक फैली है तन्हाई
न जाने कब आएगी मुझे नींद की जम्हाई
ना जाने कितने बरस से जाग रहा हूँ मैं
ना जाने किसकी बाट जो रहा हूँ मैं
मिलता नहीं सुकून क्यूँ अब भी मुझे
कँहा कँहा खोजू खुदा मैं अब तुझे
अब थोडी देर सोना चाहता हूँ मैं
बिना ख्वाब की एक नींद लेना चाहता हूँ मैं
बिना छुए मुझे अब सोने दो,
मेरी रूह को कुछ देर अकेले रो लेने दो,
शायद इस बार सो कर ये तबियत कुछ संभल जाए,
शायद इस बार कोई संस्कार मेरे सपनो में न आए,
उठने पर कहोगे तो सब फ़िर से बखेर दूँगा
इस बार मैं अपनी आत्मा को चुप रखूंगा
न कुछ कहूँगा अपनी मर्ज़ी से इस बार
सिर्फ़ और सिर्फ़ जियूँगा, इस बार
बस कुछ देर सो लेने दे मुझे
दिल से दुआएं दूँगा मैं तुझे
No comments:
Post a Comment