Friday, November 20, 2015

I no longer have patience


I no longer have patience for certain things, not because I’ve become arrogant, but simply because I reached a point in my life where I do not want to waste more time with what displeases me or hurts me.
I have no patience for cynicism, excessive criticism and demands of any nature. I lost the will to please those who do not like me, to love those who do not love me and to smile at those who do not want to smile at me. 
I no longer spend a single minute on those who lie or want to manipulate. 
I decided not to coexist anymore with pretense, hypocrisy, dishonesty and cheap praise. I do not tolerate selective erudition nor academic arrogance. 
I do not adjust either to popular gossiping. I hate conflict and comparisons. 
I believe in a world of opposites and that’s why I avoid people with rigid and inflexible personalities. 
In friendship I dislike the lack of loyalty and betrayal. 
I do not get along with those who do not know how to give a compliment or a word of encouragement. Exaggerations bore me and I have difficulty accepting those who do not like animals. 
And on top of everything I have no patience for anyone who does not deserve my patience.  ~ José Micard Teixeira

Tuesday, June 23, 2015

आयो कृष्ण अब घर चलते हैं ।


चंद सिक्के हाथ में लिए चला जाता हूँ
आज  कुछ खुशिया खरीद लाता हूँ ।

सोच रहा हूँ बहुत रोज़ से तेरे बारे में
आज कुछ देर दर पर दस्तक दिए आता हूँ ।

 चंद अल्फ़ाज़ों को ही लिख़ लेता हूँ
आज ये ख़त तुझे भेज देता हूँ ।

थामे  हुए बहुत वक़्त हो चला है
आज ये पैमाने ख़ाली कर आता हूँ ।


चंद लोग दिखे दुनिया के मेले में
आज उन लोगो से मिल आता हूँ ।

बैठा हूँ बहुत रोज़ से इंतज़ार में
आज़ कुछ देर मैं भी सो जाता हूँ ।

चंद सिक्के ये बहुत  भारी हो चले हैं, कृष्ण अब तुम ही संभालो
चंद अल्फ़ाज़ कंहा कुछ बयां कर पाएंगे, कृष्ण अब तुम ही कुछ कहो ।

इंतज़ार बहुत हो चुका, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नए ख़त तुम्हारी लेखनी से ही लिख लेते हैं ।

आगे मेले में बहुत भीड़ होगी, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नयी खुशियां रास्ते में ही बिखेर देते हैं ।

अायो कृष्ण अब चलते हैं । सिक्के, अल्फ़ाज़, मुलाकात बहुत हो गया ।
आयो कृष्ण अब घर चलते हैं । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

Friday, June 05, 2015

But You Didn't

Today, I happen to read this poem by Merrill Glass. The message behind this poem is not to wait to tell the important people in your life how you feel about them, but do it right away. You never know if you'll get the chance again.

I happen to find following images for each stanza of the poem.

Remember the time you lent me your car and I dented it?
I thought you'd kill me...
But you didn't.

Remember the time I forgot to tell you the dance was
formal, and you came in jeans?
I thought you'd hate me...
But you didn't.

Remember the times I'd flirt with
other boys just to make you jealous, and
you were?
I thought you'd drop me...
But you didn't.

There were plenty of things you did to put up with me,
to keep me happy, to love me, and there are
so many things I wanted to tell
you when you returned from
Vietnam...
But you didn't


 
 
 

 

 

 

Tuesday, June 02, 2015

तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।

आधी रात फिर उठ बैठा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं।

किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।

अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं।

सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं।

गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ  मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।


Thursday, May 07, 2015

पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा


पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा 
स्कूल गया तो मैं बड़ा हो जायूँगा ,
फिर आपकी गोदी कैसे आऊंगा ,
कैसे उंगली पकड़ आपकी मैं बाज़ार जायूँगा ,
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा मैं स्कूल नहीं जायूँगा 
स्कूल गया तो मैं भी रीति सीख जायूँगा ,
स्वाभिमान के बहाने दूर चला जायूँगा ,
कैसे फिर आपके हाथ से रोटी के निवाले खाऊंगा ,
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा 
स्कूल गया तो ये संसार वास्तव हो जायेगा ,
आपकी कहानियों का राजकुमार एक प्रतियोगी हो जायेगा ,
किसी अनजान दौड़ का चूहा या फिर किसी दीवार की ईंट बन चिन जायेगा ,
कैसे फिर आपके सीने पर  सर रख सो पायूँगा 
पापा, मैं स्कूल नहीं जायूँगा !!!

पापा , मैं स्कूल नहीं जायूँगा 
 मेरे बचपन को बचपना ही बने रहने दो ,
स्कूल एक साज़िश है, बड़ा होना - ये कैसी ख्वाहिश है ,
स्कूल एक भुलावा है, ये संसार छलावा है  ,
मुझे मेरे बचपन में जीने दो, कुछ भी करो पर मुझेअपनी गोदी में ही सोने दो ,
पापा , मैं स्कूल  नहीं जायूँगा , स्कूल गया तो मैं बड़ा हो जायूँगा !!!…

Sunday, April 12, 2015

And The Dark Knight Rises...


Alfred: [to Bruce] Remember when you left Gotham? Before all this, before Batman? You were gone seven years. Seven years I waited, hoping that you wouldn't come back. Every year, I took a holiday. I went to Florence, there's this cafe, on the banks of the Arno. Every fine evening, I'd sit there and order a Fernet Branca. I had this fantasy, that I would look across the tables and I'd see you there, with a wife and maybe a couple of kids. You wouldn't say anything to me, nor me to you. But we'd both know that you'd made it, that you were happy. I never wanted you to come back to Gotham. I always knew there was nothing here for you, except pain and tragedy. And I wanted something more for you than that. I still do.

Tuesday, March 17, 2015

कृष्ण कहता है


कृष्ण कहता है - मोह न कर
पर जब तू इठलाता है, पालने में
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है ।

कृष्ण कहता है - संसार मिथ्या है
पर जब तू चलता है, थामे ऊँगली मेरी,
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है ।

कृष्ण कहता है - योगक्षेमं वहाम्यम्
पर जब मैं पहुचता हूँ, घर थक कर,
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है

कृष्ण कहता है - निष्काम कर्म कर
पर जब देखता हूँ, महीने में खाली जेब
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है।

कृष्ण कहता है - भविष्य की फ़िक्र न कर, 
पर जब पाता हूँ तुझे देर रात में भी पढ़ते हुए 
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है।

कृष्ण कहता है - शांतचित्त से समर्पण कर 
पर जब पहुचता हूँ मैं, हाथ जोड़ कर,
न जाने तब कृष्ण कँहा चला जाता है ।

कृष्ण कहता था - साथ रहेगा वो सदा 
अब जब भी चाहता हूँ मैं, भाग निकलना,
न जाने तब कृष्ण कँहा से चला आता है।

कृष्ण कहता था - तू मुझमे आ मिलेगा
आज मैं आ गया हूँ बैकुण्ठ के द्वार पर
वो देखो कृष्ण आ रहा है। वो देखो कृष्ण आ रहा है।

इति श्री।

Thursday, January 29, 2015

जलने के लिए


कल किसी से सुना
"हज़ारों साल  जलता है कोयला तब कहीं जाकर हीरा बनता है "

हमने कहा
"हज़ारो साल जलता है कोयला हीरा बनने के लिए, बहुत बड़ा जिगर चाहिए इतना जलने के लिए "