आधी रात फिर उठ बैठा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं।
किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।
अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं।
सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं।
गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर सिमट रहा हूँ मैं।
किसने क्या क्यूँ कहा भूल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर झूल रहा हूँ मैं।
अकेले ही सबसे मिल रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर खिल रहा हूँ मैं।
सब कुछ जान कर भी अनजान बन रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर इन्सान बन रहा हूँ मैं।
गलत औ सही के पार उस मैदान पर पहुंच गया हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
तुझे याद कर फिर लौट रहा हूँ मैं।
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