Tuesday, June 23, 2015

आयो कृष्ण अब घर चलते हैं ।


चंद सिक्के हाथ में लिए चला जाता हूँ
आज  कुछ खुशिया खरीद लाता हूँ ।

सोच रहा हूँ बहुत रोज़ से तेरे बारे में
आज कुछ देर दर पर दस्तक दिए आता हूँ ।

 चंद अल्फ़ाज़ों को ही लिख़ लेता हूँ
आज ये ख़त तुझे भेज देता हूँ ।

थामे  हुए बहुत वक़्त हो चला है
आज ये पैमाने ख़ाली कर आता हूँ ।


चंद लोग दिखे दुनिया के मेले में
आज उन लोगो से मिल आता हूँ ।

बैठा हूँ बहुत रोज़ से इंतज़ार में
आज़ कुछ देर मैं भी सो जाता हूँ ।

चंद सिक्के ये बहुत  भारी हो चले हैं, कृष्ण अब तुम ही संभालो
चंद अल्फ़ाज़ कंहा कुछ बयां कर पाएंगे, कृष्ण अब तुम ही कुछ कहो ।

इंतज़ार बहुत हो चुका, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नए ख़त तुम्हारी लेखनी से ही लिख लेते हैं ।

आगे मेले में बहुत भीड़ होगी, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नयी खुशियां रास्ते में ही बिखेर देते हैं ।

अायो कृष्ण अब चलते हैं । सिक्के, अल्फ़ाज़, मुलाकात बहुत हो गया ।
आयो कृष्ण अब घर चलते हैं । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥

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