चंद सिक्के हाथ में लिए चला जाता हूँ
आज कुछ खुशिया खरीद लाता हूँ ।
सोच रहा हूँ बहुत रोज़ से तेरे बारे में
आज कुछ देर दर पर दस्तक दिए आता हूँ ।
चंद अल्फ़ाज़ों को ही लिख़ लेता हूँ
आज ये ख़त तुझे भेज देता हूँ ।
थामे हुए बहुत वक़्त हो चला है
आज ये पैमाने ख़ाली कर आता हूँ ।
चंद लोग दिखे दुनिया के मेले में
आज उन लोगो से मिल आता हूँ ।
बैठा हूँ बहुत रोज़ से इंतज़ार में
आज़ कुछ देर मैं भी सो जाता हूँ ।
चंद सिक्के ये बहुत भारी हो चले हैं, कृष्ण अब तुम ही संभालो
चंद अल्फ़ाज़ कंहा कुछ बयां कर पाएंगे, कृष्ण अब तुम ही कुछ कहो ।
इंतज़ार बहुत हो चुका, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नए ख़त तुम्हारी लेखनी से ही लिख लेते हैं ।
आगे मेले में बहुत भीड़ होगी, आयो कृष्ण अब चलते हैं
कुछ नयी खुशियां रास्ते में ही बिखेर देते हैं ।
अायो कृष्ण अब चलते हैं । सिक्के, अल्फ़ाज़, मुलाकात बहुत हो गया ।
आयो कृष्ण अब घर चलते हैं । आयो कृष्ण अब घर चलते हैं॥
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