आज भी कभी जब तवे पर ऊँगली जल जाती है |
ना जाने क्यों माँ की बहुत याद आती है ||
थम जाता हूँ दफ्तर का रुख करते हुए जब भी |
याद आते ही दस्तूर पिताजी का, कदम चल पड़ते है अपने आप ||
चुभते क्रेडिट कार्ड औ OTP की टुन टुन के बीच,
बरबस खींचती है ध्यान, कोने में रखी गुलक्क की खनक, आँखें मींच ||
और इसी सबके बीच autoplay ने टीवी पर चलाया
जाने कँहा मेरा जिगर गया जी। ..अभी अभी यही था किधर गया जी...
__फिर न जाने कभी __
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