क्या चाहत है मुझे सचमुच मेरे साथ की
क्या राहत है मुझे सचमुच मेरे आप की
क्यों नहीं रहम खाता खुदा अपनी खुदाई पर
क्यों नहीं सहम जाता खुदा अब जुदाई पर
कभी तो खैर मैं भी रूक जाऊँगा
कभी तो खैर मैं भी थम जाऊँगा
शायद तभी तुझे भी सुकून आये
शायद तब तू भी खुदा से इन्सान बन जाये
चल अब मैं अपने घर के लिए चलता हूँ
शायद इस बार तुझे मेरा घर मिल जाये
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