Tuesday, March 20, 2007

शायद खुदा को

आखिर क्यों छीलता है, खुदा चांद को रोज रात ,
चांदनी क्यों बरसती है , जुदा हो रोज रात ,

क्यों नहीं रूक जाता ये जहाँ कुछ पल के लिए,
क्यों नहीं थम जाती ये धड़कन कुछ पल के लिए,

हमे भी सुकून आ जाता अगर तुम कुछ देर और बैठ जाते ,
शायद कुछ और देर के लिए हम दोज़ख का रास्ता भूल जाते,

पर शायद खुदा को मेरा सुकून मंजूर ना होगा,
तेरा नाम लेकर कुछ और जीना उसे मंजूर ना होगा,

2 comments:

  1. बहुत खूब... हिन्दी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है। उम्मीद है कि आप पूरी तरह हिन्दी में एक ब्लॉग बनाएँगे।

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