हुज़ूर ने सोचा, कि शायद उनके रुख से हम सहम जायेंगे,
हुज़ूर ने ये भी सोचा, कि उनकी खिदमत में हम रुक जायेंगे,
पर हुज़ूर, किसी के रुख की परवाह कब किसी तूफ़ान ने की है,
सहमा हो चाहे, कभी वो कुछ देर,
पर क्या उसने कभी रुकने की हिमाकत की है,
पर क्या उसने कभी रुकने की हिमाकत की है,
एक शेर बाकी है अभी...- २२/०२/२०१०
आज - १३/०८/२०१४ २:५० सुबह
हुज़ूर, सोचिये अब कुछ और, क्यूंकि हम बढ़ते आयेंगे,
हुज़ूर, अकेले हम अब नहीं है, जो थक कर रुक जायेंगे,
साथ हमारे कुछ ऐसे किरदार हैं,
जो बने हैं तूफानों में, जिनका नाम दिलदार है
आज - १३/०८/२०१४ २:५० सुबह
हुज़ूर, सोचिये अब कुछ और, क्यूंकि हम बढ़ते आयेंगे,
हुज़ूर, अकेले हम अब नहीं है, जो थक कर रुक जायेंगे,
साथ हमारे कुछ ऐसे किरदार हैं,
जो बने हैं तूफानों में, जिनका नाम दिलदार है