Sunday, January 20, 2013

दया

"आ रहा हूँ बेटा, बस पहुचने ही वाला हूँ", पिछले दो चौराहों से यही बुदबुदा रहा था वो, बार बार। इतनी सर्द रात में, भगाए जा रहा रिक्शा। क्या फ़र्क पड़ता है किसी को रास्ते में, क्या नाम है उसका, और क्यूँ खाली रिक्शा भगा रहा  था।

लगभग दम टूट ही गया था, झोपडी तक पहुचते पहुचते। कुछ तो पूर्वाभास था, की पुसपा बस पहुचती ही होगी उसके 4 महीने के रवि को लेकर। किसी रावण की भाँती टूट ही पड़ी थी पुसपा उस पर, 'रामू,अगर फिर देरी की तो झोपडी में ही छोड़ जाऊंगी इसको'. बिना अपराध के अपराधी सा खड़ा हुआ सुन गया वो। क्या करता, रवि जब एक महीने का था, तभी सीता चल बसी। सो दिन में पुसपा के पास रवि को छोड़ रिक्शा चलता था वो। पुसपा की एक ही शर्त थी, नौ बजे से पहले वापस आ जाना, वर्ना वो रवि को ऐसे हे छोड़ जाएगी।

खैर अब आ गया था वो, उसने रवि को अपनी बाँहों में लिया, जाने कब से दूध के लिए बिलख रहा था, इससे पहले कुछ पूछ पाता पुसपा तो चली गयी थी, उसने झोपडी में देखा, कुछ नहीं था जिससे वो रवि को चुप करा सकता, बस सीने से ही लगा पाया। अब दूध तो था नहीं, सो उसने एक चमची में थोडा सा पानी लिया उसी में थोड़ी से चीनी मिला कर देने लगा, थोड़ी देर में रवि चुप होकर सोने की कोशिश करने लगा।

बाहर ठण्ड बढती जा रही थी, पता नहीं ये महीना कैसे निकलेगा, सोच सोच कर ही  हैरान था, रवि को गोदी में लेकर दीवार से सर लगा कर बैठ गया, थोड़ी ही देर में बारिश शुरू गयी। हवा तो ठंडी थी ही, अब बर्फीली हो चली थी, उसने रवि को अपने अन्दर भीच सा लिया। 

रवि ने भी एक अनजाने डर से सहम कर रोना बंद कर दिया, वो भी शांत हो गया, ईश्वर  को मन में धन्यवाद दिया, की चलो कुछ तो दया हुई। 

रात में सर्दी बदती गयी, बर्फ पड़नी शरू हुई और बर्फीली हवा खिड़की से आती रही।

खैर रात बीती और सवेरा भी हुआ, अभी आसमान में सूरज मराज प्रकट ही ही थे की खीजती हुई पुसपा झोपड़े में चली आई, 'अरे आज काम नहीं जायेगा क्या ?'...कहते ही उसने अपना हाथ बढाया, और अगले पल चीख पड़ी।

ईश्वर ने रात में बड़ी दया की, रवि के साथ उसने रामू को भी उस भयंकर सर्दी से मुक्त कर दिया था, दोनों के चेहरों पर  एक निश्छल से मुस्कान थी। 

रामू ने सीता से किया वादा निभाया,  जब तक जीया, रवि को सीने से लगा कर जीया। रामू और रवि दोनों ही अब मुक्त थे और अब कभी अलग ना होंगे।

No comments:

Post a Comment