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Sunday, September 18, 2011
राह सामने
उठ अब रात भी ढलने लगी,
उठ अब सांस भी चलने लगी,
क्यूँ अब सुस्त है ये तन
क्यूँ अब पस्त है ये मन
चल अब की राह सामने
चल अब की बांह थामने
मंजिल की तलाश में राह को अब न भूलना,
जो चले हैं बांह थाम कर, उनको अब न छोड़ना
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